करारविन्दे | Mukundashtakam - Kararavindena Padaravindam | Govind Damodar stotra
|| श्री गोविन्द दामोदर माधवेति स्तोत्रम् ||
Kararvinde na padarvindam
mukhar vinde vinve shayantam
vatasya patrasya pute shayanam
balam mukundam mansa smarami
mukhar vinde vinve shayantam
vatasya patrasya pute shayanam
balam mukundam mansa smarami
करार विन्दे न पादारविन्दं
मुखार
मुखार
विन्दे विनवे शयन्तम्
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानम् बालं मुकुन्दंमनसा स्मरामि
hey nath Narayana Vasudeva
jihve pibasva murutame tadev
Govind Damodar madhaveti
Govind Damodar madhaveti
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी
हे नाथ नारायण वासुदेवः
जिह्वे पिबस्वः मुरुतमे तादेवः
गोविन्द दामोदर माधवेति
गोविन्द दामोदर माधवेति
Vikretu kamakil gop kanya
murari padarpit chitta vritthi
dadhyaadikam moh vashad vochad
Govind damodar madhaveti
विक्रेतु कामकिल गोप कन्या
मुरारी पदार्पित चित्तः वृत्ति
दद्यादिकम् मोह वशद वोचद्
गोविन्द दामोदर माधवेति
Gruhe gruhe Gop vadhu kadamba
sarve militwa sam vapya yogam
punyani namani pathanti nityam
Govind Damodar Madhaveti
गृहे गृहे गोप वधु कदम्बा
Gruhe gruhe Gop vadhu kadamba
sarve militwa sam vapya yogam
punyani namani pathanti nityam
Govind Damodar Madhaveti
गृहे गृहे गोप वधु कदम्बा
सर्वे मिलित्व सम वाप्य योगं
पुण्यानी नामनिम पठन्ति नित्यम्
गोविन्द दामोदर माधवेति
Sukham Shayanam nilaye nijepi
namani vishnuh pravadanti martyaha
te nicshitam tanmayatam vrajanti
Govind Damodar madhaveti
सुखं शयानम् निलये निजेपि
नामणि विष्णु प्रवादन्ति मार्तयः
ते निक्षितम् तनमायतम् व्रजन्ति
गोविन्द दामोदर माधवेति
Jihave sadaivan bhajsundarani
namani Krishnasya manoharani
samasta bhaktarti veenashani
Govind Damodar madhaveti
जिह्वे सदैवम् भजसुन्दरानी
नामानी कृष्णस्य मनोहरानी
समस्त भक्तार्ति विनाशनी
sukhavasami idmev saram
sukhavasane idmev gneyam
deha vasane idmev japyam
Govind Damodar Madhhaveti
नामानी कृष्णस्य मनोहरानी
समस्त भक्तार्ति विनाशनी
गोविन्द दामोदर माधवेति
sukhavasane idmev gneyam
deha vasane idmev japyam
Govind Damodar Madhhaveti
सुखावसामी इदमेव सरम
सुखावसानिइदमेव ग्नेयं
देहःवासनी इदमेव जपं
Shree Krishna Radhavar var gokulam
Gopal Govardhan nath vishnuh
Jihve Pibasva mrutame tadev
Govind damodar madhaveti
श्री कृष्ण राधावर वर गोकुलम्
गोपाल गोवर्धन नाथ विष्णुः जिह्वे पिबस्व मृतमे तदेवः
Tvameva yache mam dehi jihave
samagte dand dhare krutante
vaktvya mevam madhuram subhakta
Govind damodar madhaveti
सुखावसानिइदमेव ग्नेयं
देहःवासनी इदमेव जपं
गोविन्द दामोदर माधवेति
Gopal Govardhan nath vishnuh
Jihve Pibasva mrutame tadev
Govind damodar madhaveti
श्री कृष्ण राधावर वर गोकुलम्
गोपाल गोवर्धन नाथ विष्णुः जिह्वे पिबस्व मृतमे तदेवः
गोविन्द दामोदर माधवेति
Tvameva yache mam dehi jihave
samagte dand dhare krutante
vaktvya mevam madhuram subhakta
Govind damodar madhaveti
त्वमेव याचे मम देहि जिह्वे
समगते दंड धरे कृतान्ते
वकत्वय मेवं मधुरं सभकते
गोविन्द दामोदर माधवेति
satyam hitam tvam parmam vadami
aavarana yetha madhuraksharani
Govind Damodar Madhaveti
जिह्वे रसगने मधुर प्रियत्वम्
सत्यम हितं तवं परमं वदामि
आवरणा यथा मधुरक्शराणी
आवरणा यथा मधुरक्शराणी
गोविन्द दामोदर माधवेति
॥ जय श्री कृष्ण ॥
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करार विन्दे न पदार विन्दम् ,
मुखार विन्दे विनिवेश यन्तम् ।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानम् ,
बालम् मुकुंदम् मनसा स्मरामि ॥ १ ॥
वट वृक्ष के पत्तो पर विश्राम करते हुए, कमल के समान कोमल पैरो को, कमल के समान हस्त से पकड़कर, अपने कमलरूपी मुख में धारण किया है, मैं उस बाल स्वरुप भगवान श्री कृष्ण को मन में धारण करता हूं ॥ १ ॥
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे,
हे नाथ नारायण वासुदेव ।
जिव्हे पिबस्वामृतमेतदेव,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ २ ॥
हे नाथ, मेरी जिव्हा सदैव केवल आपके विभिन्न नामो (कृष्ण, गोविन्द, दामोदर, माधव ....) का अमृतमय रसपान करती रहे ॥ २ ॥
विक्रेतु कामा किल गोप कन्या,
मुरारि - पदार्पित - चित्त - वृति ।
दध्यादिकम् मोहवसाद वोचद्,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ३ ॥
गोपिकाये, दूध, दही, माखन बेचने की इच्छा से घर से चली तो है, किन्तु उनका चित्त बालमुकुन्द (मुरारि) के चरणारविन्द में इस प्रकार समर्पित हो गया है कि, प्रेम वश अपनी सुध - बुध भूलकर "दही लो दही" के स्थान पर जोर - जोर से गोविन्द, दामोदर, माधव आदि पुकारने लगी है ॥ ३ ॥
घृहे - घृहे गोप वधु कदम्बा,
सर्वे मिलित्व समवाप्य योगम् ।
पुण्यानी नामानि पठन्ति नित्यम्,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ४ ॥
घर - घर में गोपिकाएँ विभिन्न अवसरों पर एकत्र होकर, एक साथ मिलकर, सदैव इसी उत्तमौतम, पुण्यमय, श्री कृष्ण के नाम का स्मरण करती है, गोविन्द, दामोदर, माधव .... ॥ ४ ॥
सुखम् शयाना निलये निजेपि,
नामानि विष्णो प्रवदन्ति मर्त्याः ।
ते निचितम् तनमय - ताम व्रजन्ति,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ५ ॥
साधारण मनुष्य अपने घर पर आराम करते हुए भी, भगवान श्री कृष्ण के इन नामो, गोविन्द, दामोदर, माधव का स्मरण करता है, वह निश्चित रूप से ही, भगवान के स्वरुप को प्राप्त होता है ॥ ५ ॥
जिव्हे सदैवम् भज सुंदरानी,
नामानि कृष्णस्य मनोहरानी ।
समस्त भक्तार्ति विनाशनानि,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ६ ॥
है जिव्हा, तू भगवान श्री कृष्ण के सुन्दर और मनोहर इन्ही नामो, गोविन्द, दामोदर, माधव का स्मरण कर, जो भक्तो की समस्त बाधाओं का नाश करने वाले है ॥ ६ ॥
सुखावसाने तु इदमेव सारम्,
दुःखावसाने तु इद्मेव गेयम् ।
देहावसाने तु इदमेव जाप्यं,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ७ ॥
सुख के अन्त में यही सार है, दुःख के अन्त में यही गाने योग्य है, और शरीर का अन्त होने के समय यही जपने योग्य है, हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ॥ ७ ॥
श्री कृष्ण राधावर गोकुलेश,
गोपाल गोवर्धन - नाथ विष्णो ।
श्री कृष्ण राधावर गोकुलेश,
गोपाल गोवर्धन - नाथ विष्णो ।
जिव्हे पिबस्वामृतमेतदेव,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ८ ॥
हे जिव्हा तू इन्ही अमृतमय नमो का रसपान कर, श्री कृष्ण , अतिप्रिय राधारानी, गोकुल के स्वामी गोपाल, गोवर्धननाथ, श्री विष्णु, गोविन्द, दामोदर, और माधव ॥ ८ ॥
जिव्हे रसज्ञे मधुर - प्रियात्वं,
सत्यम हितम् त्वां परं वदामि ।
आवर्णयेता मधुराक्षराणि,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ९ ॥
हे जिव्हा, तुझे विभिन्न प्रकार के मिष्ठान प्रिय है, जो कि स्वाद में भिन्न - भिन्न है। मैं तुझे एक परम् सत्य कहता हूँ, जो की तेरे परम हित में है। केवल प्रभु के इन्ही मधुर (मीठे) , अमृतमय नमो का रसास्वादन कर, गोविन्द , दामोदर , माधव ..... ॥ ९ ॥
त्वामेव याचे मम देहि जिव्हे,
समागते दण्ड - धरे कृतान्ते ।
वक्तव्यमेवं मधुरं सुभक्त्या ,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ १० ॥
हे जिव्हे, मेरी तुझसे यही प्रार्थना है, जब यमराज मुझे लेने आये , उस समय सम्पूर्ण समर्पण से इन्ही मधुर नमो को लेना , गोविन्द , दामोदर , माधव ॥ १० ॥
श्री नाथ विश्वेश्वर विश्व मूर्ते,
श्री देवकी - नन्दन दैत्य - शत्रो ।
जिव्हे पिबस्वामृतमेतदेव,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ११ ॥
हे प्रभु , सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वामी , विश्व के स्वरुप , देवकी नन्दन , दैत्यों के शत्रु , मेरी जिव्हा सदैव आपके अमृतमय नमो गोविन्द , दामोदर , माधव का रसपान करती है ॥ ११ ॥
॥ जय श्री कृष्ण ॥
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ८ ॥
हे जिव्हा तू इन्ही अमृतमय नमो का रसपान कर, श्री कृष्ण , अतिप्रिय राधारानी, गोकुल के स्वामी गोपाल, गोवर्धननाथ, श्री विष्णु, गोविन्द, दामोदर, और माधव ॥ ८ ॥
जिव्हे रसज्ञे मधुर - प्रियात्वं,
सत्यम हितम् त्वां परं वदामि ।
आवर्णयेता मधुराक्षराणि,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ९ ॥
हे जिव्हा, तुझे विभिन्न प्रकार के मिष्ठान प्रिय है, जो कि स्वाद में भिन्न - भिन्न है। मैं तुझे एक परम् सत्य कहता हूँ, जो की तेरे परम हित में है। केवल प्रभु के इन्ही मधुर (मीठे) , अमृतमय नमो का रसास्वादन कर, गोविन्द , दामोदर , माधव ..... ॥ ९ ॥
त्वामेव याचे मम देहि जिव्हे,
समागते दण्ड - धरे कृतान्ते ।
वक्तव्यमेवं मधुरं सुभक्त्या ,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ १० ॥
हे जिव्हे, मेरी तुझसे यही प्रार्थना है, जब यमराज मुझे लेने आये , उस समय सम्पूर्ण समर्पण से इन्ही मधुर नमो को लेना , गोविन्द , दामोदर , माधव ॥ १० ॥
श्री नाथ विश्वेश्वर विश्व मूर्ते,
श्री देवकी - नन्दन दैत्य - शत्रो ।
जिव्हे पिबस्वामृतमेतदेव,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ११ ॥
हे प्रभु , सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वामी , विश्व के स्वरुप , देवकी नन्दन , दैत्यों के शत्रु , मेरी जिव्हा सदैव आपके अमृतमय नमो गोविन्द , दामोदर , माधव का रसपान करती है ॥ ११ ॥
॥ जय श्री कृष्ण ॥
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प्रभु ने इसिलिए स्वाद और शब्द का इंद्रीय एक ही रखा है
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