Quote 1:Neither in this world nor elsewhere is there any happiness in store for him who always doubts.

In Hindi: सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता ना इस लोक में है ना ही कहीं और.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 2: Delusion arises from anger. The mind is bewildered by delusion. Reasoning is destroyed when the mind is bewildered. One falls down when reasoning is destroyed.

In Hindi: क्रोध से भ्रम पैदा होता है. भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है. जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है. जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 3: The power of God is with you at all times; through the activities of mind, senses, breathing, and emotions; and is constantly doing all the work using you as a mere instrument.

In Hindi: मन की गतिविधियों, होश, श्वास, और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है; और लगातार तुम्हे बस एक साधन की तरह प्रयोग कर के सभी कार्य कर रही है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 4: The wise sees knowledge and action as one; they see truly.

In Hindi: ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, वही सही मायने में देखता है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 5: The mind acts like an enemy for those who do not control it.

In Hindi: जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 6: Perform your obligatory duty, because action is indeed better than inaction.”

In Hindi: अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 7: Sever the ignorant doubt in your heart with the sword of self-knowledge. Observe your discipline. Arise.

In Hindi: आत्म-ज्ञान की तलवार से काटकर अपने ह्रदय से अज्ञान के संदेह को अलग कर दो. अनुशाषित रहो. उठो.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 8: Man is made by his belief. As he believes, so he is.

In Hindi: मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है.जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 9: Hell has three gates: lust, anger, and greed.

In Hindi:नर्क के तीन द्वार हैं: वासना, क्रोध और लालच.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 10: There is nothing lost or wasted in this life.

In Hindi: इस जीवन में ना कुछ खोता है ना व्यर्थ होता है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 11: The mind is restless and difficult to restrain, but it is subdued by practice.

In Hindi: मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 12: People will talk about your disgrace forever. To the honored, dishonor is worse than death.

In Hindi: लोग आपके अपमान के बारे में हमेशा बात करेंगे. सम्मानित व्यक्ति के लिए, अपमान मृत्यु से भी बदतर है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 13: To the illumined man or woman, a clod of dirt, a stone, and gold are the same.

In Hindi: प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए, गंदगी का ढेर, पत्थर, और सोना सभी समान हैं.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 14: Creation is only the projection into form of that which already exists.

In Hindi: निर्माण केवल पहले से मौजूद चीजों का प्रक्षेपण है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 15: One can become whatever one wants to be if one constantly contemplates on the object of desire with faith.

In Hindi: व्यक्ति जो चाहे बन सकता है यदी वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 16: Fear not what is not real, never was and never will be. What is real, always was and cannot be destroyed.

In Hindi: उससे मत डरो जो वास्तविक नहीं है, ना कभी था ना कभी होगा.जो वास्तविक है, वो हमेशा था और उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 17: The wise should not unsettle the mind of the ignorant who is attached to the fruits of work.

In Hindi: ज्ञानी व्यक्ति को कर्म के प्रतिफल की अपेक्षा कर रहे अज्ञानी व्यक्ति के दीमाग को अस्थिर नहीं करना चाहिए.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 18: The faith of each is in accordance with one’s own nature.

In Hindi: हर व्यक्ति का विश्वास उसकी प्रकृति के अनुसार होता है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 19: Death is as sure for that which is born, as birth is for that which is dead. Therefore grieve not for what is inevitable.

In Hindi: जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है जितना कि मृत होने वाले के लिए जन्म लेना. इसलिए जो अपरिहार्य है उस पर शोक मत करो.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 20: Unnatural work produces too much stress.

In Hindi: अप्राकृतिक कर्म बहुत तनाव पैदा करता है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 21: Setting aside all noble deeds, just surrender completely to the will of God. I shall liberate you from all sins. Do not grieve.

In Hindi: सभी अच्छे काम छोड़ कर बस भगवान में पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओ. मैं तुम्हे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा. शोक मत करो.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 22: Much better to do one’s own work even if you have to do it imperfectly than it is to do somebody elses work perfectly.

In Hindi: किसी और का काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है कि अपना काम करें, भले ही उसे अपूर्णता से करना पड़े.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 23: I give the knowledge, to those who are ever united with Me and lovingly adore Me.

In Hindi: मैं उन्हें ज्ञान देता हूँ जो सदा मुझसे जुड़े रहते हैं और जो मुझसे प्रेम करते हैं.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 24: I look upon all creatures equally; none are less dear to me and none more dear. But those who worship me with love live in me, and I come to life in them.

In Hindi: मैं सभी प्राणियों को सामान रूप से देखता हूँ; ना कोई मुझे कम प्रिय है ना अधिक. लेकिन जो मेरी प्रेमपूर्वक आराधना करते हैं वो मेरे भीतर रहते हैं और मैं उनके जीवन में आता हूँ.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 25: A Self-realized person does not depend on anybody except God for anything.

In Hindi: प्रबुद्ध व्यक्ति सिवाय ईश्वर के किसी और पर निर्भर नहीं करता.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 26: One attains the eternal imperishable abode by My grace, even while doing all duties, just by taking refuge in Me.

In Hindi: मेरी कृपा से कोई सभी कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए भी बस मेरी शरण में आकर अनंत अविनाशी निवास को प्राप्त करता है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 27: Only the fortunate warriors, O Arjuna, get such an opportunity for an unsought war that is like an open door to heaven.

In Hindi: हे अर्जुन, केवल भाग्यशाली योद्धा ही ऐसा युद्ध लड़ने का अवसर पाते हैं जो स्वर्ग के द्वार के सामान है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 28: God is in everything as well as above everything.

In Hindi: भगवान प्रत्येक वस्तु में है और सबके ऊपर भी.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 29: The wise do not rejoice in sensual pleasures.

In Hindi: बुद्धिमान व्यक्ति कामुक सुख में आनंद नहीं लेता.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 30: Neither do I see the beginning nor the middle nor the end of Your Universal Form.

In Hindi: आपके सार्वलौकिक रूप का मुझे न प्रारंभ न मध्य न अंत दिखाई दे रहा है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 31: The one who sees inaction in action, and action in inaction, is a wise person.

In Hindi: जो कार्य में निष्क्रियता और निष्क्रियता में कार्य देखता है वह एक बुद्धिमान व्यक्ति है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 32: I am the sweet fragrance in the earth. I am the heat in the fire, the life in all living beings, and the austerity in the ascetics.

In Hindi: मैं धरती की मधुर सुगंध हूँ. मैं अग्नि की ऊष्मा हूँ, सभी जीवित प्राणियों का जीवन और सन्यासियों का आत्मसंयम हूँ.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 33: You grieve for those who are not worthy of grief, and yet speak the words of wisdom. The wise grieve neither for the living nor for the dead.

In Hindi: तुम उसके लिए शोक करते हो जो शोक करने के योग्य नहीं हैं, और फिर भी ज्ञान की बाते करते हो.बुद्धिमान व्यक्ति ना जीवित और ना ही मृत व्यक्ति के लिए शोक करते हैं.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 34: There was never a time when I, you, or these kings did not exist; nor shall we ever cease to exist in the future.

In Hindi: कभी ऐसा समय नहीं था जब मैं, तुम,या ये राजा-महाराजा अस्तित्व में नहीं थे, ना ही भविष्य में कभी ऐसा होगा कि हमारा अस्तित्व समाप्त हो जाये.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 35: Works do not bind Me, because I have no desire for the fruits of work.

In Hindi: कर्म मुझे बांधता नहीं, क्योंकि मुझे कर्म के प्रतिफल की कोई इच्छा नहीं.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 36: Both you and I have taken many births. I remember them all, O Arjuna, but you do not remember.

In Hindi: हे अर्जुन ! हम दोनों ने कई जन्म लिए हैं. मुझे याद हैं, लेकिन तुम्हे नहीं.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 37: The one who truly understands My transcendental birth and activities, is not born again after leaving this body and attains My abode.”

In Hindi: वह जो वास्तविकता में मेरे उत्कृष्ट जन्म और गतिविधियों को समझता है, वह शरीर त्यागने के बाद पुनः जन्म नहीं लेता और मेरे धाम को प्राप्त होता है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 38: To those ever steadfast devotees, who always remember or worship Me with single-minded contemplation, I personally take responsibility for their welfare.”

In Hindi: अपने परम भक्तों, जो हमेशा मेरा स्मरण या एक-चित्त मन से मेरा पूजन करते हैं, मैं व्यक्तिगत रूप से उनके कल्याण का उत्तरदायित्व लेता हूँ.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 39: Karma-yoga is a supreme secret indeed.

In Hindi: कर्म योग वास्तव में एक परम रहस्य है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 40: Karma does not bind one who has renounced work.

In Hindi: कर्म उसे नहीं बांधता जिसने काम का त्याग कर दिया है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 41: The wise should work without attachment, for the welfare of the society.

In Hindi: बुद्धिमान व्यक्ति को समाज कल्याण के लिए बिना आसक्ति के काम करना चाहिए.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote42: For those who wish to climb the mountain of spiritual awareness, the path is selfless work. For those who have attained the summit of union with the Lord, the path is stillness and peace.

In Hindi: जो व्यक्ति आध्यात्मिक जागरूकता के शिखर तक पहुँच चुके हैं , उनका मार्ग है निःस्वार्थ कर्म . जो भगवान् के साथ संयोजित हो चुके हैं उनका मार्ग है स्थिरता और शांति.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote43: Though I am the author of this system, one should know that I do nothing and I am eternal.

In Hindi: यद्द्यापी मैं इस तंत्र का रचयिता हूँ, लेकिन सभी को यह ज्ञात होना चाहिए कि मैं कुछ नहीं करता और मैं अनंत हूँ.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote44: They all attain perfection When they find joy in their work.

In Hindi: जब वे अपने कार्य में आनंद खोज लेते हैं तब वे पूर्णता प्राप्त करते हैं.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote45: One who abandons all desires and becomes free from longing and the feeling of ‘I’ and ‘my’ attains peace.

In Hindi: वह जो सभी इच्छाएं त्याग देता है और “मैं ” और “मेरा ” की लालसा और भावना से मुक्त हो जाता है उसे शांती प्राप्त होती है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote46: There is no one hateful or dear to Me. But, those who worship Me with devotion, they are with Me and I am also with them.

In Hindi: मेरे लिए ना कोई घृणित है ना प्रिय.किन्तु जो व्यक्ति भक्ति के साथ मेरी पूजा करते हैं , वो मेरे साथ हैं और मैं भी उनके साथ हूँ.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote47: Those who long for success in their work here [on the earth] worship the demigods.

In Hindi: जो इस लोक में अपने काम की सफलता की कामना रखते हैं वे देवताओं का पूजन करें.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote48: I give heat, I send as well as withhold the rain, I am immortality as well as death.

In Hindi: मैं ऊष्मा देता हूँ, मैं वर्षा करता हूँ और रोकता भी हूँ, मैं अमरत्व भी हूँ और मृत्यु भी.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote49: The evil doers, the ignorant, the lowest persons who are attached to demonic nature, and whose intellect has been taken away by Maya do not worship or seek Me.

In Hindi: बुरे कर्म करने वाले, सबसे नीच व्यक्ति जो राक्षसी प्रवित्तियों से जुड़े हुए हैं, और जिनकी बुद्धि माया ने हर ली है वो मेरी पूजा या मुझे पाने का प्रयास नहीं करते.

Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote50: Whosoever desires to worship whatever deity with faith, I make their faith steady in that very deity.

In Hindi: जो कोई भी जिस किसी भी देवता की पूजा विश्वास के साथ करने की इच्छा रखता है, मैं उसका विश्वास उसी देवता में दृढ कर देता हूँ.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote51: I know, O Arjuna, the beings of the past, of the present, and those of the future, but no one really knows Me.

In Hindi: हे अर्जुन !, मैं भूत, वर्तमान और भविष्य के सभी प्राणियों को जानता हूँ, किन्तु वास्तविकता में कोई मुझे नहीं जानता.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 52: The unsuccessful yogi is reborn, after attaining heaven and living there for many years, in the house of the pure and prosperous.

In Hindi: स्वर्ग प्राप्त करने और वहां कई वर्षों तक वास करने के पश्चात एक असफल योगी का पुन: एक पवित्र और समृद्ध कुटुंब में जन्म होता है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 53: The mind alone is one’s friend as well as one’s enemy.

In Hindi: केवल मन ही किसी का मित्र और शत्रु होता है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 54: I am seated in the hearts of all beings.

In Hindi: मैं सभी प्राणियों के ह्रदय में विद्यमान हूँ.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 55: There is nothing, animate or inanimate, that can exist without Me.

In Hindi: ऐसा कुछ भी नहीं , चेतन या अचेतन , जो मेरे बिना अस्तित्व में रह सकता हो.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 56: The One who leaves the body, at the hour of death, remembering Me attains My abode. There is no doubt about this.

In Hindi: वह जो मृत्यु के समय मुझे स्मरण करते हुए अपना शरीर त्यागता है, वह मेरे धाम को प्राप्त होता है. इसमें कोई शंशय नहीं है.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Quote 57: Those who have no faith in this knowledge follow the cycle of birth and death without attaining Me.

In Hindi: वह जो इस ज्ञान में विश्वास नहीं रखते, मुझे प्राप्त किये बिना जन्म और मृत्यु के चक्र का अनुगमन करते हैं.
Srimadbhagwadgita श्रीमद्भगवद्गीता

Bhagavad Gita quotes

सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता



श्रीमद्‍भगवद्‍गीता का महत्व

कल्याण की इच्छा वाले मनुष्यों को उचित है कि मोह का त्याग कर अतिशय श्रद्धा-भक्तिपूर्वक अपने बच्चों को अर्थ और भाव के साथ श्रीगीताजी का अध्ययन कराएँ।
स्वयं भी इसका पठन और मनन करते हुए भगवान की आज्ञानुसार साधन करने में समर्थ हो जाएँ क्योंकि अतिदुर्लभ मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर अपने अमूल्य समय का एक क्षण भी दु:खमूलक क्षणभंगुर भोगों के भोगने में नष्ट करना उचित नहीं है।

श्रीमद्भगवद्‌गीता हिन्दुओं के पवित्रतम ग्रन्थों में से एक है। महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने गीता का सन्देश अर्जुन को सुनाया था। यह महाभारत के भीष्मपर्व के अन्तर्गत दिया गया एक उपनिषद् है। 
भगवत गीता में एकेश्वरवाद, कर्म योग, ज्ञानयोग, भक्ति योग की बहुत सुन्दर ढंग से चर्चा हुई है।

श्रीमद्भगवद्‌गीता की पृष्ठभूमि महाभारत का युद्ध है। जिस प्रकार एक सामान्य मनुष्य अपने जीवन की समस्याओं में उलझकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है और जीवन की समस्यायों से लड़ने की बजाय उससे भागने का मन बना लेता है उसी प्रकार अर्जुन जो महाभारत के महानायक थे, अपने सामने आने वाली समस्याओं से भयभीत होकर जीवन और क्षत्रिय धर्म से निराश हो गए थे, अर्जुन की तरह ही हम सभी कभी-कभी अनिश्चय की स्थिति में या तो हताश हो जाते हैं और या फिर अपनी समस्याओं से विचलित होकर भाग खड़े होते हैं।

श्रीमद भगवद गीता | Shrimad Bhagavad Gita Star Plus 2013 | गीता सार



Famous Quotes by Lord Krishna in Hindi

सन्तानों के भविष्य को सुख से भरने का प्रयत्न करना यही प्रत्येक माता-पिता का सर्वप्रथम कर्तव्य होता है। 
जिन्हें आप इस संसार में लाये हैं और जिनके कर्मों से ये जगत आपका पूर्ण परिचय पायेगा भविष्य में.… 
उनके भविष्य के सुख की योजना करने से अधिक महत्वपूर्ण कार्य और हो भी क्या सकता है! किन्तु 
सुख और सुरक्षा क्या ये मनुष्य के कर्मों से प्राप्त नहीं होते ? माता-पिता के दिये हुए अच्छे या बुरे संस्कार 
उनकी दी हुई योग्य अथवा अयोग्य शिक्षा…… 
क्या आज के सारे कर्मों का मोल नहीं ? संस्कार और शिक्षा से बनता है मनुष्य का चरित्र…… 
अर्थात माता-पिता अपनी सन्तानों का जैसा चरित्र बनाते हैं । वैसा ही बनता है उनका भविष्य…… 
किन्तु फिर भी अधिकतर माता-पिता अपनी सन्तानों का भविष्य सुरक्षित करने की चिन्ता में 
उनके चरित्र के निर्माण का कार्य भूल ही जाते हैं। अर्थात जो माता-पिता अपनी सन्तानों के भविष्य 
की चिन्ता करते हैं वास्तव में उन्हें कोई लाभ होता ही नहीं, किन्तु जो माता-पिता अपनी सन्तानों के 
भविष्य की नहीं अपितु उनके चरित्र का निर्माण करते हैं उन संतानों की प्रशस्ति(प्रशंसा ) सारा संसार करता है।

1. जब दो व्यक्ति एक दूसरे के निकट आते हैं तो एक दूसरे के लिए सीमायें और मर्यादायें निर्मित करने का प्रयत्न करते हैं. हम यदि सारे संबंधों पर विचार करें तो देखेंगे की सारे संबंधों का आधार यही सीमायें हैं जो हम दूसरों के लिए निर्मित करते हैं और यदि अनजाने में भी कोई व्यक्ति इन सीमाओं को तोड़ता है तो उसी क्षण हमारा ह्दय क्रोध से भर जाता है।


किन्तु इन सीमाओं का वास्तविक रूप क्या है? सीमाओं के द्वारा हम दूसरे व्यक्ति को निर्णय करने की अनुमति नहीं देते; अपना निर्णय उस व्यक्ति पर थोपते हैं। अर्थात किसी की स्वतन्त्रता का अस्वीकार करते हैं और जब स्वतन्त्रता का अस्वीकार किया जाता है तो उस व्यक्ति का ह्दय दुख से भर जाता है और जब वो सीमाओं को तोड़ता है तो हमारा मन क्रोध से भर जाता है। क्या ऐसा नही होता?
पर यदि एक-दूसरे की स्वतन्त्रता का सम्मान किया जाय तो किसी मयादाओं या सीमाओ की आवश्यकता ही नहीं होती। अर्थात जिस प्रकार स्वीकार किसी संबंध का देह है। क्या वैसे ही स्वतन्त्रता किसी संबंध की आत्मा नहीं???

स्वयं विचार कीजिए!

2. निर्णय के क्षण में हम हमेशा ही किसी अन्य व्यक्ति के सुझाव सूचना एवं मंत्रणा या परामर्श को आधार बनाते हैं और हमारे भविष्य का आधार हमारे आज किये हुये निर्णय के ऊपर होता है। तो क्या……? तो क्या हमारा भविष्य किसी अन्य व्यक्ति के दिये हुए सुझाव एवं परामर्श का फल है? क्या हमारा सम्पूर्ण जीवन किसी अन्य व्यक्ति की बुद्धि का परिणाम है?

सबका अनुभव है कि अलग-अलग लोग एक ही स्थिति मे अलग-अलग परामर्श देते है मन्दिर में खड़ा भक्त कहता है कि दान करना चाहिए और चोर कहता है कि मौका मिले तो इस मूर्ति के श्रृंगार चुरा लूं। धर्म से भरा ह्दय धर्ममय सुझाव देता है और अधर्म से भरा ह्दय अधर्म का परामर्श देता है। धर्ममय सुझाव का स्वीकार ही मनुष्य को सुख की ओर ले जाता है किन्तु ऐसे परामर्श का स्वीकार करना तभी सम्भव हो पाता है जब ह्दय में धर्म हो। अर्थात किसी का सुझाव अथवा परामर्श स्वीकार करने से पूर्व स्वयं अपने ह्दय में धर्म को स्थापित करना क्या आवश्यक नहीं ?

स्वयं विचार कीजिए!

3. पिता हमेशा ही अपनी सन्तान के सुख की कामना करते हैं उनके भविष्य की चिन्ता करते रहते हैं। इसी कारणवश ही अपनी सन्तानों के भविष्य का मार्ग स्वयं निश्चित करने का प्रयत्न करते रहते हैं। जिस मार्ग पर पिता स्वयं चला है जिस मार्ग के कंकड़ – पत्थर को स्वयं देखा है, मार्ग की छाया मार्ग की धूप को स्वयं जाना है उसी मार्ग पर उसी का पुत्र भी चले यही इच्छा रहती है हर पिता की। निःसंदेह उत्तम भावना है ये… किन्तु तीन प्रश्नों के ऊपर विचार करना हम भूल ही जाते हैं। कौन से तीन प्रश्न?

पहला – क्या समय के साथ प्रत्येक मार्ग बदल नहीं जाते? क्या समय हमेशा ही नई चुनौतियों को लेकर नहीं आता? तो फिर बीते हुए समय के अनुभव नई पीढ़ी को किस प्रकार लाभ दे सकते हैं?

दूसरा – क्या प्रत्येक सन्तान अपने माता- पिता की छवि होता है? हां संस्कार तो सन्तानों को अवश्य माता-पिता देते हैं। किन्तु भीतर की क्षमता तो स्वयं ईश्वर देते हैं। तो जिस मार्ग पर पिता को सफलता मिली है तो विश्वास है कि उसी मार्ग पर उसकी सन्तानों को भी सफलता और सुख प्राप्त होगा?
तीसरा – क्या जीवन का संघर्ष और चुनौतियों लाभकारी नहीं होती? क्या प्रत्येक नया प्रश्न प्रत्येक नये उत्तर का द्वार नहीं खोलता? तो फिर सन्तानों को नई-नई चुनौतियों और नये-नये प्रश्नों से दूर रखना ये उनके लिए लाभ करना कहलायेगा या हानि पहुँचाना?

अर्थात जिस प्रकार मनुष्य के भविष्य के मार्ग का निर्माण करना श्रेष्ठ है वैसे ही सन्तानों के जीवन का मार्ग निश्चित करने के बदले उन्हे नये संघर्षो के साथ जूझने के लिए मनोबल और ज्ञान देना अधिक लाभदायक नहीं होगा?

स्वयं विचार कीजिए!

4. सबके जीवन मे ऐसा प्रसंग अवश्य आता है कि सत्य कहने का निश्चय होता है ह्दय में। किन्तु मुख से सत्य निकल नहीं पाता। कोई भय मन को घेर लेता है किसी घटना एवं प्रसंग के विषय मे बात करना या स्वयं से कोई भूल हो जाये उसके बारे मे कुछ बोलना।
क्या ये सत्य है? नहीं …. ये तो केवल तथ्य है। अर्थात जैसा हुआ वैसा बोल देना सामान्य सी बात है किन्तु कभी-कभी उस तथ्य को बोलते हुये भी भय लगता है कदाचित किसी दूसरे की भावनाओं का विचार आता है मन में! दूसरे को दुख होगा ये भय भी शब्दों को रोकता है तो ये सत्य क्या है?

जब भय रहते हुए भी कोई तथ्य बोलता है तो वो सत्य कहलाता है। वास्तव में सत्य कुछ और नहीं । केवल निर्भयता का दूसरा नाम है और निर्भय होने का कोई समय नहीं होता। क्योंकि निर्भयता आत्मा का स्वभाव है। अर्थात प्रत्येक क्षण क्या सत्य बोलने का क्षण नहीं होता?
स्वयं विचार कीजिए!

5. पूर्व आभासों के आधार पर हम भविष्य के सुख-दुख की कल्पना करते हैं। भविष्य के दुख का कारण दूर करने के लिए हम आज योजना बनाते हैं। किन्तु कल के संकट को आज निर्मूल करने से हमें लाभ मिलता है या हानि पहुँचती है? ये प्रश्न हम कभी नहीं करते। सत्य तो यह है कि संकट और उसका निवारण साथ जन्मते हैं व्यक्ति के लिए भी और सृष्टि के लिए भी…… नहीं ?

आप अपने भूतकाल का स्मरण कीजिए, इतिहास को देखिए आप तुरन्त ही ये जान पायेंगे कि जब-जब संकट आता है तब-तब उसका निवारण करने वाली शक्ति भी जन्म लेती है!
यही तो संसार का चलन है वस्तुतः संकट ही शक्ति के जन्म का कारण है प्रत्येक व्यक्ति जब संकट से निकलता है तो एक पद आगे बढ़ा होता है अधिक चमकता हुआ होता है आत्मविश्वास से भरा होता है न केवल अपने लिए अपितु विश्व के लिए भी… क्या यह सत्य नहीं ? वास्तव में संकट का जन्म है अवसर का जन्म! अपने आपको बदलने का, अपने विचारों को ऊँचाई पर करने का सत्य, अपनी आत्मा को बलवान और ज्ञान मंडित बनाने का सत्य! जो ये कर पाता है उसे कोई संकट नहीं होता| किन्तु जो यह नहीं कर पाता वो तो स्वयं एक संकट है। स्वयं के लिए भी और संसार के लिए भी!
स्वयं विचार कीजिए!

6. परम्परा में धर्म बसता है और परम्परा ही धर्म को सम्भालने का कार्य करती है यह सत्य है! क्या केवल परम्परा ही धर्म है?
सत्य तो यह है कि जिस प्रकार पाषाण में शिल्प होता है उसी प्रकार परम्परा में धर्म होता है! इस पत्थर में शिल्प है ये पत्थर शिल्प नहीं ! शिल्प को उजागर करने के लिए उसे तोड़ना पड़ता है अनावश्यक भागो को दूर करना पडता है उसी प्रकार परम्पराओं में धर्म ढूढना पड़ता है! जिस प्रकार मेरे(कृष्ण) द्वारा इन्द्र पूजा की परम्परा को तोडकर गोवरधन पूजा का धर्म न ढूंढा जाता तो यादवों को उनकी मुक्ति का मार्ग नहीं मिल पाता!

अर्थात परम्परा को पूर्णतः छोड देने वाला धर्म से वंचित रह जाता है और परम्परा का अन्तः अनुकरण करने वाला भी धर्म को प्राप्त नहीं कर पाता!
कहते हैं हंस के पास नीरक्षीर विवेक होता है दूध में मिले पानी को छोडकर केवल दूध ही ग्रहण करता है तो क्या सच्चा धर्म प्राप्त करने के लिए ह्दय में ज्ञान से जन्मा विवेक आवश्यक है?और ऐसे विवेक के बिना जिसे धर्म मान भी लिया जाये जो वास्तव मे धर्म न भी हो! ऐसा भी तो हो सकता है!
स्वयं विचार कीजिए!

7. भविष्य के आधार पर सब आज का निर्णय लेना चाहते हैं! भविष्य मे सुख मिले, भविष्य सुरक्षित हो ऐसे निर्णय आज लेने का प्रयत्न रहता है सबका! आप अपने जीवन को देखिये! क्या आपके अधिकतर निर्णय के पीछे भविष्य का विचार नहीं होता?
और हो भी क्यों न ? अपने जीवन को सरल और सुखमय बनाने का प्रयत्न करने का अधिकार सबका है! पर भविष्य तो कोई नहीं जानता केवल कल्पना ही की जा सकती है तो जीवन के सारे महत्वपूर्ण निर्णय केवल कल्पनाओं के आधार पर करते हैं हम|
क्या निर्णय करने का कोई तीसरा मार्ग हो सकता है? सारे सुखों का आधार धर्म है और वो धर्म मनुष्य के ह्दय में बसता है तो प्रत्येक निर्णय से पूर्व स्वयं अपने ह्दय से एक प्रश्न अवश्य पूछ लेना कि ये निर्णय स्वार्थ से जन्मा है या धर्म से! क्या इतना पर्याप्त नहीं भविष्य के बदले धर्म का विचार करने से क्या भविष्य अधिक सुखपूर्ण नहीं होगा?
स्वयं विचार कीजिए!

8. जब अपने किसी अच्छे कार्य के उत्तर में दुख प्राप्त होता है अथवा किसी के दुष्ट कार्य मे सुख प्राप्त होता है तो मन अवश्य यह विचार करता है कि अच्छा कार्य करने का धर्म के मार्ग पर चलने का तात्पर्य क्या है? पर दुष्ट आत्मा को क्या प्राप्त होता है यह भी देखिए ….. दुष्टता करने वाला ह्दय सदा चंचल रहता है और उबलता रहता है मन में सदा नये-नये संघर्ष उत्पन्न होते हैं! अविश्वास उसे जीवन भर दौड़ाता है तो क्या यह सुख है? जबकि धर्म पर चलने वाला अच्छा कार्य करने वाला सव चरित्र व्यक्ति का ह्दय शान्त रहता है परिस्थ्तियाँ उसके जीवन मे बाधायें नहीं बनती! समाज में सम्मान और मन में सन्तोष रहता है सदा……
अर्थात अच्छा वर्ताव भविष्य में किसी सुख का मार्ग नहीं ! अच्छा वर्ताव स्वयं सुख है अथवा बुरा बर्ताव भविष्य में किसी दुख का मार्ग नहीं ! बुरा बर्ताव स्वयं दुख है अधर्म उसी क्षण दुख उत्पन्न करता है! अर्थात धर्म से सुख नहीं .. धर्म स्वयं सुख है|
स्वयं विचार कीजिए!

9. मनुष्य के जीवन का चालक है भय(डर)! मनुष्य सदा ही भय का कारण ढूंढ लेता है! जीवन मे हम जिन मार्गो का चुनाव करते हैं! वो चुनाव भी हम भय के कारण ही लेते हैं! किन्तु यह भय वास्तविक (REAL) होता है?
भय का अर्थ है आने वाले समय मे विपत्ति की कल्पना करना| किन्तु समय का स्वामी कौन है? न हम समय के स्वामी हैं और न हमारे शत्रु! समय तो ईश्वर के अधीन चलता है! तो क्या कोई यदि आपको हानि पहुँचाने के लिए केवल योजना बनाता है!
तो क्या वो आपको वास्तव मे हानि पहुँचा सकता है? नहीं ……
किन्तु भय से भरा हुआ ह्दय हमें अधिक हानि पहुँचा सकता है क्या यह सत्य नहीं ?
विपत्ति के समय भयभीत ह्दय अयोग्य निर्णय करता है और विपत्ति को अधिक पीडादायक बनाता है! किन्तु विश्वास से भरा ह्दय विपत्ति के समय को भी सरलता से पार कर जाता है! अर्थात जिस कारण से मनुष्य ह्दय में भय को स्थान देता है! भय ठीक उसके विपरीत कार्य करता है क्या यह सत्य नहीं ?
स्वयं विचार कीजिए!

10. जीवन मे आने वाले संघर्षो के लिए मनुष्य स्वंय को योग्य नहीं मानता! जब उसे अपने ही बल पर विश्वास नहीं रहता! तब वो सतगुणों को त्याग कर दुर्गुणों को अपनाता है!
वस्तः मनुष्य के जीवन मे दुर्गुनता जन्म ही तब लेती है जब उसके जीवन में आत्मविश्वास नहीं होता! आत्मविश्वास ही अच्छाई को धारण करता है!
ये आत्मविश्वास है क्या?
जब मनुष्य यह मानता है कि जीवन का संघर्ष उसे र्दुबल बनाता है तो उसे अपने ऊपर विश्वास नहीं रहता| वो संघर्ष के पार जाने के बदले संघर्ष से छूटने के उपाय ढूंढने लगता है किन्तु वह जब यह समझता है कि ये संघर्ष उसे अधिक शक्तिशाली बनाते हैं ठीक वैसे जैसे व्यायाम करने से देह की शक्ति बढती है तो प्रत्येक संघर्ष के साथ उसका उत्साह बढ़ता है!
अर्थात आत्मविश्वास और कुछ भी नहीं सिर्फ मन की स्थिति है जीवन को देखने का दृष्टिकोण मात्र है और जीवन का दृष्टिकोण मनुष्य के अपने वश मे होता है!
स्वयं विचार कीजिए!

Krishna Seekh | कृष्णा सीख | Parents duty | स्वयं विचार कीजिए!

कृष्ण की द्वारिका-कैसे बनी,कितनी पुरानी है


द्वारका गुजरात के देवभूमि द्वारका जिले में स्थित एक नगर तथा हिन्दू तीर्थस्थल है। यह हिन्दुओं के साथ सर्वाधिक पवित्र तीर्थों में से एक तथा चार धामों में से एक है। यह सात पुरियों में एक पुरी है।जिले का नाम द्वारका पुरी से रखा गया है जीसकी रचना २०१३ में की गई थी। यह नगरी भारत के पश्चिम में समुन्द्र के किनारे पर बसी है। हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार, भगवान कॄष्ण ने इसे बसाया था। यह श्रीकृष्ण की कर्मभूमि है।

द्वारका निर्माण 01 | Mahabharat | विश्वकर्मा - द्वारका के रचियता | Dwarika Nirman

कृष्ण को रणछोड़ क्यों कहते हैं?



श्रीकृष्ण ने अपना पांच्यजन्य शंख बजाया।
उनके शंख की भयंकर ध्वनि सुनकर शत्रुपक्ष की सेना के वीरों के हृदय डर के मारे थर्रा उठे।
जब कालयवन भगवान् श्रीकृष्ण की ओर दौड़ा, तब वे दूसरी ओर मुंह करके रणभूमि से भाग चले और उन योगिदुर्लभ प्रभु को पकडऩे के लिए कालयवन उनके पीछे-पीछे दौडऩे लगा।
रणछोड़ भगवान् लीला करते हुए भाग रहे थे, कालयवन पग-पग पर यही समझता था कि अब पकड़ा, तब पकड़ा।
इस प्रकार भगवान् बहुत दूर एक पहाड़ की गुफा में घुस गए।
उनके पीछे कालयवन भी घुसा।
वहां उसने एक दूसरे ही मनुष्य को सोते हुए देखा।
उसे देखकर कालयवन ने सोचा ''देखो तो सही, यह मुझे इस प्रकार इतनी दूर ले आया और अब इस तरह-मानो इसे कुछ पता ही न हो, साधु बाबा बनकर सो रहा है।
यह सोचकर उस मूढ़ ने उसे कसकर एक लात मारी।
वह पुरुष बहुत दिनों से वहां सोया हुआ था।
पैर की ठोकर लगने से वह उठ पड़ा और धीरे-धीरे उसने अपनी आंखें खोलीं।
इधर-उधर देखने पर पास ही कालयवन खड़ा हुआ दिखाई दिया।
वह पुरुष इस प्रकार ठोकर मारकर जगाए जाने से कुछ रुष्ट हो गया था।
उसकी दृष्टि पड़ते ही कालयवन के शरीर में आग पैदा हो गई और वह क्षणभर में जलकर राख का ढेर हो गया।
कालयवन को जो पुरुष गुफा में सोए मिले.।
वे इक्ष्वाकुवंषी महाराजा मान्धाता के पुत्र राजा मुचुकुन्द थे।
वे ब्राह्मणों के परम भक्त, सत्यप्रतिज्ञ, संग्राम विजयी और महापुरुष थे।
एक बार इन्द्रादि देवता असुरों से अत्यन्त भयभीत हो गए थे।
उन्होंने अपनी रक्षा के लिए राजा मुचुकुन्द से प्रार्थना की और उन्होंने बहुत दिनों तक उनकी रक्षा की।
उस समय देवताओं ने कह दिया था कि सोते समय यदि आपको कोई मूर्ख बीच में ही जगा देगा, तो वह आपकी दृष्टि पड़ते ही उसी क्षण भस्म हो जाएगा।
कालयवन के भस्म होते ही भगवान श्रीकृष्ण मुचुकुंद के समक्ष प्रकट हुए मुचुकुंद ने उनको प्रणाम किया।
भगवान् ने उसे बद्रिकाश्रम जाने के लिए कहा।

रणछोड़ कृष्ण | Ranchod Krishna | भगवान कृष्ण को रनछोड़ क्यों कहा जाता है

                            पन्नग इससे सर्प पैदा होते हैं। इसके प्रतिकार स्वरूप गरुड़ बाण छोड़ा जाता है।


पन्नग अस्त्र का प्रयोग पौराणिक समय में युद्धों आदि में किया जाता था। यह एक प्रकार का बाण था, जिसके प्रयोग से सांप ही सांप पैदा हो जाते थे। इन सर्पों को शत्रु की सेना पर छोड़ा जाता था। ये वे आयुध हैं, जो मन्त्रों से चलाये जाते हैं।
प्रत्येक शस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का अधिकार होता है और मन्त्र-तन्त्र के द्वारा उसका संचालन होता है। वस्तुत: इन्हें दिव्य तथा मान्त्रिक-अस्त्र कहते हैं।

Pannag Astra | पन्नग अस्त्र | अस्त्र शस्त्र | शम्बरासुर ने शिवजी के पन्नगि अस्त्र का प्रयोग किया

|| श्री गोविन्द दामोदर माधवेति स्तोत्रम् ||



Kararvinde na padarvindam
mukhar vinde vinve shayantam
vatasya patrasya pute shayanam
balam mukundam mansa smarami

करार विन्दे  न पादारविन्दं 
मुखार 
 विन्दे विनवे शयन्तम् 
 
वटस्य पत्रस्य  पुटे शयानम् बालं  मुकुन्दंमनसा स्मरामि 

shree krishna Govind hare murari
hey nath Narayana Vasudeva
jihve pibasva murutame tadev
Govind Damodar madhaveti
Govind Damodar madhaveti

श्री कृष्ण  गोविन्द हरे  मुरारी 
हे नाथ नारायण वासुदेवः 
जिह्वे पिबस्वः मुरुतमे तादेवः 
गोविन्द दामोदर माधवेति 
गोविन्द दामोदर माधवेति 


Vikretu kamakil gop kanya
murari padarpit chitta vritthi
dadhyaadikam moh vashad vochad
Govind damodar madhaveti

विक्रेतु कामकिल गोप कन्या 
मुरारी पदार्पित चित्तः वृत्ति 
दद्यादिकम् मोह वशद वोचद् 
गोविन्द दामोदर माधवेति

Gruhe gruhe Gop vadhu kadamba
sarve militwa sam vapya yogam
punyani namani pathanti nityam
Govind Damodar Madhaveti

गृहे गृहे गोप वधु कदम्बा 
सर्वे मिलित्व सम वाप्य योगं 
पुण्यानी नामनिम पठन्ति नित्यम् 
गोविन्द दामोदर माधवेति 

Sukham Shayanam nilaye nijepi
namani vishnuh pravadanti martyaha
te nicshitam tanmayatam vrajanti 
Govind Damodar madhaveti

सुखं  शयानम्  निलये निजेपि 
नामणि विष्णु प्रवादन्ति मार्तयः 
ते  निक्षितम्  तनमायतम्  व्रजन्ति 
 गोविन्द दामोदर माधवेति 

Jihave sadaivan bhajsundarani
namani Krishnasya manoharani
samasta bhaktarti veenashani
Govind Damodar madhaveti

जिह्वे सदैवम् भजसुन्दरानी 
नामानी कृष्णस्य मनोहरानी 
समस्त भक्तार्ति विनाशनी 
 गोविन्द दामोदर माधवेति 

sukhavasami idmev saram
sukhavasane idmev gneyam
deha vasane idmev japyam
Govind Damodar Madhhaveti

सुखावसामी इदमेव सरम 
सुखावसानिइदमेव ग्नेयं 
देहःवासनी इदमेव जपं 
 गोविन्द दामोदर माधवेति 

Shree Krishna Radhavar var gokulam
Gopal Govardhan nath vishnuh
Jihve Pibasva mrutame tadev
Govind damodar madhaveti

श्री कृष्ण राधावर वर गोकुलम् 
गोपाल गोवर्धन नाथ विष्णुः जिह्वे पिबस्व मृतमे तदेवः 
 गोविन्द दामोदर माधवेति 


Tvameva yache mam dehi jihave
samagte dand dhare krutante
vaktvya mevam madhuram subhakta
Govind damodar madhaveti

त्वमेव याचे  मम  देहि  जिह्वे 
समगते  दंड  धरे  कृतान्ते 
वकत्वय  मेवं  मधुरं सभकते  
 गोविन्द दामोदर माधवेति 

Jihve rasagne madhur priya twam 
satyam hitam tvam parmam vadami 
aavarana yetha madhuraksharani 
Govind Damodar Madhaveti 

जिह्वे रसगने  मधुर  प्रियत्वम्  
सत्यम  हितं  तवं  परमं वदामि  
आवरणा  यथा  मधुरक्शराणी  
 गोविन्द दामोदर माधवेति 

॥ जय श्री कृष्ण ॥
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करार विन्दे न पदार विन्दम् ,
मुखार विन्दे विनिवेश यन्तम् । 
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानम् ,
बालम् मुकुंदम् मनसा स्मरामि ॥ १ ॥ 

वट वृक्ष के पत्तो पर विश्राम करते हुए, कमल के समान कोमल पैरो को, कमल के समान हस्त से पकड़कर, अपने कमलरूपी मुख में धारण किया है, मैं उस बाल स्वरुप भगवान श्री कृष्ण को मन में धारण करता हूं ॥ १ ॥ 

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे,
हे नाथ नारायण वासुदेव ।
जिव्हे पिबस्वामृतमेतदेव,
     गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ २ ॥ 

हे नाथ, मेरी जिव्हा सदैव केवल आपके विभिन्न नामो (कृष्ण, गोविन्द, दामोदर, माधव ....) का अमृतमय रसपान करती रहे ॥ २ ॥  

विक्रेतु कामा किल गोप कन्या,
मुरारि - पदार्पित - चित्त - वृति ।
दध्यादिकम् मोहवसाद वोचद्,
 गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ३  ॥ 

गोपिकाये, दूध, दही, माखन बेचने की इच्छा से घर से चली तो है, किन्तु उनका चित्त बालमुकुन्द (मुरारि) के चरणारविन्द में इस प्रकार समर्पित हो गया है कि, प्रेम वश अपनी सुध - बुध भूलकर "दही  लो दही" के स्थान पर जोर - जोर से गोविन्द, दामोदर, माधव आदि पुकारने लगी है ॥ ३ ॥

घृहे - घृहे गोप वधु कदम्बा,
सर्वे मिलित्व समवाप्य योगम् ।
पुण्यानी नामानि पठन्ति नित्यम्,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ४ ॥ 

घर - घर में गोपिकाएँ विभिन्न अवसरों पर एकत्र होकर, एक साथ मिलकर, सदैव इसी उत्तमौतम, पुण्यमय, श्री कृष्ण के नाम का स्मरण करती है, गोविन्द, दामोदर, माधव .... ॥ ४ ॥

सुखम् शयाना निलये निजेपि,
नामानि विष्णो प्रवदन्ति मर्त्याः ।
ते निचितम् तनमय - ताम व्रजन्ति,
गोविन्द दामोदर माधवेति  ॥ ५ ॥

साधारण मनुष्य अपने घर पर आराम करते हुए भी, भगवान श्री कृष्ण के इन नामो, गोविन्द, दामोदर, माधव का स्मरण करता है, वह निश्चित रूप से ही, भगवान के स्वरुप को प्राप्त होता है ॥ ५ ॥

जिव्हे सदैवम् भज सुंदरानी, 
नामानि कृष्णस्य मनोहरानी । 
समस्त भक्तार्ति विनाशनानि,
गोविन्द दामोदर माधवेति  ॥ ६ ॥

है जिव्हा, तू भगवान श्री कृष्ण के सुन्दर और मनोहर इन्ही नामो, गोविन्द, दामोदर, माधव का स्मरण कर, जो भक्तो की समस्त बाधाओं का नाश करने वाले है ॥ ६ ॥ 

सुखावसाने तु इदमेव सारम्,
दुःखावसाने तु इद्मेव गेयम् । 
देहावसाने तु इदमेव जाप्यं,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ७ ॥ 

सुख के अन्त में यही सार है, दुःख के अन्त में यही गाने योग्य है, और शरीर का अन्त होने के समय यही जपने योग्य है, हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ॥ ७ ॥

श्री कृष्ण राधावर गोकुलेश,
गोपाल गोवर्धन - नाथ विष्णो ।
जिव्हे पिबस्वामृतमेतदेव,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ८ ॥

हे जिव्हा तू इन्ही अमृतमय नमो का रसपान कर, श्री कृष्ण , अतिप्रिय राधारानी, गोकुल के स्वामी गोपाल, गोवर्धननाथ,  श्री विष्णु, गोविन्द, दामोदर, और माधव ॥ ८ ॥

जिव्हे रसज्ञे मधुर - प्रियात्वं,
सत्यम हितम् त्वां परं वदामि ।
आवर्णयेता मधुराक्षराणि,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ९ ॥

हे जिव्हा, तुझे विभिन्न प्रकार के मिष्ठान प्रिय है, जो कि स्वाद में भिन्न - भिन्न है। मैं तुझे एक परम् सत्य कहता हूँ, जो की तेरे परम हित में है। केवल प्रभु के इन्ही मधुर (मीठे) , अमृतमय नमो का रसास्वादन कर, गोविन्द , दामोदर , माधव ..... ॥ ९ ॥

त्वामेव याचे मम देहि जिव्हे,
समागते दण्ड - धरे कृतान्ते ।
वक्तव्यमेवं मधुरं सुभक्त्या ,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ १० ॥

हे जिव्हे, मेरी तुझसे यही प्रार्थना है, जब यमराज मुझे लेने आये , उस समय सम्पूर्ण समर्पण से इन्ही मधुर नमो को लेना , गोविन्द , दामोदर , माधव ॥ १० ॥

श्री नाथ विश्वेश्वर विश्व मूर्ते,
श्री देवकी - नन्दन दैत्य - शत्रो ।
जिव्हे पिबस्वामृतमेतदेव,
गोविन्द दामोदर माधवेति ॥ ११ ॥

हे प्रभु , सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वामी , विश्व के स्वरुप , देवकी नन्दन , दैत्यों के शत्रु , मेरी जिव्हा सदैव आपके अमृतमय नमो गोविन्द , दामोदर , माधव का रसपान करती है ॥ ११ ॥

॥ जय श्री कृष्ण ॥



करारविन्दे | Mukundashtakam - Kararavindena Padaravindam | Govind Damodar stotra

Shiv Tandav Stotram || शिव तांडव स्तोत्रम् ||

श्रीगणेशाय नमः ||


जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् |
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं, चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||१||


जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि |
धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||२||


धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस् फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे |
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||३||


लता भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे |
मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||४||


सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः |
भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः ||५||


ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् |
सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदे शिरोज टालमस्तु नः ||६||


कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके |
धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम |||७||


नवीन मेघ मण्डली निरुद् धदुर् धरस्फुरत्- कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः |
निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद् धुरंधरः ||८||


प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा- वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम् |
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छि दांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे ||९||


अखर्व सर्व मङ्गला कला कदंब मञ्जरी रस प्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् |
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्त कान्ध कान्त कं तमन्त कान्त कं भजे ||१०||


जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस – द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट् |
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ||११||


स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्- – गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |
तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः ( समं प्रवर्तयन्मनः) कदा सदाशिवं भजे ||१२||


कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् |
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ||१३||


इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् |
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ||१४||


पूजा वसान समये दशवक्त्र गीतं यः शंभु पूजन परं पठति प्रदोषे |
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः ||१५||

इति श्रीरावण- कृतम् शिव- ताण्डव- स्तोत्रम् सम्पूर्णम्

SHIV TANDAV | Devon Ka Dev Mahadev | Shiv Tandav Stotram | शिव तांडव स्तोत्रम





ओ कान्हा अब तो मुरली की मधुर सुना दो तान
o kahna ab to murli ki madhur suna do taan

ओ.. ओ कान्हा अब तो मुरली की मधुर सुना दो तान 
ओ कान्हा अब तो मुरली की मधुर सुना दो तान
मैं हूँ तेरी प्रेम दिवानी मुझको तु पहचान मधुर सुना दो तान.. 

ओ कान्हा अब तो मुरली की मधुर सुना दो तान 

जब से तुम संग मैंने अपने नैना जोड़ लिये हैं 

क्या मैया क्या बाबुल सबसे रिश्ते तोड़ लिए हैं 

तेरे मिलन को व्याकुल हैं ये कबसे मेरे प्राण मधुर सुना दो तान..

ओ कान्हा अब तो मुरली की मधुर सुना दो तान 

सागर से भी गहरी मेरे प्रेम की गहराई 

लोक लाज कुल की मरियादा सज कर 

मैं तो आई मेरी प्रीती से 

ओ निर्मोही अब ना बनो अनजान मधुर सुना दो तान.. 

ओ कान्हा अब तो मुरली की मधुर सुना दो तान 

मैं हूँ तेरी प्रेम दिवानी मुझको तुम पहचान मधुर सुना दो तान.. 


मधुर सुना दो तान..

ओ कान्हा अब तो मुरली की मधुर सुना दो तान | O Kanha Ab To Murli Ki Madhur

अंतिम क्षण में ॐ उच्चारण का महत्व

ॐ मंत्र उच्चारण से आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता हे
अंतिम क्षण में ॐ उच्चारण का महत्व  | मनुष्य जीवन का उदेश्य मृत्यु के चक्र से निकल कर मोक्ष प्राप्त करना हे | आत्मा का परमात्मा से मिलन कैसे होता हे | ॐ मंत्र उच्चारण से आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता हे

अंतिम क्षण में ॐ उच्चारण का महत्व | श्रीमद भगवद गीता | Shrimad Bhagavad Gita | गीता सार | Bhagwat Gita Saar

माया क्या हे | संसार को परमात्मा की माया क्यों कहा जाता हे | परमात्मा कण-कण में समाया हुआ है


संसार को परमात्मा की माया क्यों कहा जाता हे | परमात्मा कण-कण में समाया हुआ है
माया क्या है? सांख्ययोग का ज्ञान
रिश्ते नाते का चक्रव्यूह कैसे चलता हे?
मृत्यु के बाद संबंध समाप्त हो जाता हे
 रिश्ते नाते मोह को उत्पन्न करते है

माया क्या हे | श्रीमद भगवद गीता | Shrimad Bhagavad Gita | गीता सार | Bhagwat Gita Saar

स्थितप्रज्ञ मनुष्य  की बुद्धि स्थिर रहती हे


स्थितप्रज्ञ मनुष्य  की बुद्धि स्थिर रहती हे
स्थित प्रज्ञ व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को विषयों से समेट कर उन्हें अपने वश में कर लेता है तथा मन को ईश्वर में लीन कर लेता है

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते ।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥

क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः ।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ॥

विषयोंका निरंतर चिंतन करनेवाले पुरुषकी विषयोंमें आसक्ति हो जाती है, आसक्तिसे उन विषयोंकी कामना उत्पन्न होती है और कामनामें (विघ्न पडनेसे) क्रोध उत्पन्न होता है ।क्रोधसे संमोह (मूढभाव) उत्पन्न होता है, संमोहसे स्मृतिभ्रम होता है (भान भूलना), स्मृतिभ्रम से बुद्धि अर्थात् ज्ञानशक्तिका नाश होता है, और बुद्धिनाश होने से सर्वनाश हो जाता है । 

 यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेऽभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥

कछुवा सब ओरसे अपने अंगोंको जैसे समेट लेता है, वैसे ही जब यह (महात्मा) इन्द्रियोंके विषयोंसे इन्द्रियोंको सब प्रकारसे ह्टा लेता है, तब उसकी बुद्धि स्थिर है (एसा समज) । 
ज्ञान से बुध्दि, बुध्दि से मन और मन से इन्द्रियों को वश करनाचाहिए

स्थितप्रज्ञ की परिभाषा | श्रीमद भगवद गीता | Shrimad Bhagavad Gita | गीता सार | Bhagwat Gita Saar

परिवर्तन प्रकृति का नियम 



प्रकृति अर्थात् क्या हे ? प्र = विशेष और कृति = किया गया। स्वाभाविक की गई चीज़ नहीं। लेकिन विभाव में जाकर, विशेष रूप से की गई चीज़, वही प्रकृति है।

प्रकृति के तीन गुण से ( सत्त्व , रजस् और तमस् ) सृष्टि की रचना हुई है । ये तीनों घटक सजीव-निर्जीव, स्थूल-सूक्ष्म वस्तुओं में विद्यमान रहते हैं । इन तीनों के बिना किसी वास्तविक पदार्थ का अस्तित्व संभव नहीं है। किसी भी पदार्थ में इन तीन गुणों के न्यूनाधिक प्रभाव के कारण उस का चरित्र निर्धारित होता है।

सत्वगुण का अर्थ "पवित्रता" तथा "ज्ञान" है। सत्व अर्थात अच्छे कर्मों की ओर मोड़ने वाला गुण खा हे | तीनों गुणों ( सत्त्व , रजस् और तमस् ) में से सर्वश्रेष्ठ गुण सत्त्व गुण हे सात्विक मनुष्य – किसी कर्म फल अथवा मान सम्मान की अपेक्षा अथवा स्वार्थ के बिना समाज की सेवा करना ।

सत्त्वगुण दैवी तत्त्व के सबसे निकट है । इसलिए सत्त्व प्रधान व्यक्ति के लक्षण हैं – प्रसन्नता, संतुष्टि, धैर्य, क्षमा करने की क्षमता, अध्यात्म के प्रति झुकाव । एक सात्विक व्यक्ति हमेशा वैश्विक कल्याण के निमित्त काम करता है। हमेशा मेहनती, सतर्क होता है । एक पवित्र जीवनयापन करता है। सच बोलता है और साहसी होता है।

रजस् का अर्थ क्रिया तथा इच्छाएं है। राजसिक मनुष्य – स्वयं के लाभ तथा कार्यसिद्धि हेतु जीना । जो गति पदार्थ के निर्जीव और सजीव दोनों ही रूपों में देखने को मिलती वह रजस् के कारण देखने को मिलती है। निर्जीव पदार्थों में गति और गतिविधि, विकास और ह्रास रजस् का परिणाम हैं वहीं जीवित पदार्थों में क्रियात्मकता, गति की निरंतरता और पीड़ा रजस के परिणाम हैं।

तमस् का अर्थ अज्ञानता तथा निष्क्रियता है। तामसिक मनुष्य – दूसरों को अथवा समाज को हानि पहुंचाकर स्वयं का स्वार्थ सिद्ध करना | तम प्रधान व्यक्ति, आलसी, लोभी, सांसारिक इच्छाओं से आसक्त रहता है ।

तमस् गुण के प्रधान होने पर व्यक्ति को सत्य-असत्य का कुछ पता नहीं चलता, यानि वो अज्ञान के अंधकार (तम) में रहता है। यानि कौन सी बात उसके लिए अच्छी है वा कौन सी बुरी ये यथार्थ पता नहीं चलता और इस स्वभाव के व्यक्ति को ये जानने की जिज्ञासा भी नहीं होती।

प्रकृति के तीन गुण सत्व,रजस,तमस की परिभाषा | श्रीमद भगवद गीता | Shrimad Bhagavad Gita | गीता सार | Bhagwat Gita Saar

श्रीमद भगवद गीता अनुसार कर्म और कर्मयोगी की परिभाषा प्रारब्ध क्या हे कैसे बनती हे और उसे कौन बनाता हे ? | निष्काम कर्म योग किसे कहते हे


श्रीमद भगवद गीता अनुसार कर्म और कर्मयोगी की परिभाषा प्रारब्ध क्या हे कैसे बनती हे और उसे कौन बनाता हे ? | निष्काम कर्म योग किसे कहते हे

प्रारब्ध में न हो तो मुँह तक पोहकचर भी निवाला छीन जाता हे
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ।। 

कर्मण्ये वाधिका रस्ते मा फलेषु कदाचन । 
मा कर्म फल हेतुरभुह, माँ ते संगोत्स्व कर्मण्ये।।


प्रारब्ध क्या हे कैसे बनती हे और उसे कौन बनाता हे ? | निष्काम कर्म योग | NISHKAM KARMA YOGA

                                Veeron Ke Veer Bahubali 2 The Conclusion



बाहुबली 2: द कॉन्क्लूज़न, बाहुबली: द बिगनिंग फ़िल्म का दूसरा भाग है। यह एक ऐतिहासिक फिक्शन फ़िल्म है। इस फ़िल्म को तेलुगू और तमिल भाषा में बनाया गया है । हिन्दी, मलयालम और अन्य भाषाओं में इसकी डबिंग की गयी है। इसका निर्देशन एस॰एस॰ राजामौली ने किया है। यह 8 जुलाई 2016 को सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने वाली थी। लेकिन इसके निर्माण में देरी के कारण यह समय और आगे बढ़ा दिया गया।और यह 28 अप्रैल 2017 मे प्रदर्शित की गयी। शुरू में, दोनों भागों को संयुक्त रूप से  ​​250 करोड़ ( 2.5 अरब) के बजट पर तैयार किया गया,हालांकि बाद में दूसरे भाग का बजट 200 करोड़ बढ़ा दिया गया और इस प्रकार कुल मिलकर दोनों फिल्मों का बजट 450 करोड़ हो गया। इस तरह, बाहुबली 2: द कॉन्क्लूज़न भारतीय सिनेमा इतिहास की सबसे महंगी फिल्म हो गयी।
इस फ़िल्म ने रिलीज़ से पहले ही ₹ 500 करोड़ ( 5 अरब) का बिजनेस का कीर्तिमान बनाया है।
फिल्म को 28 अप्रैल 2017 को दुनिया भर में प्रदर्शित किया गया। बाहुबली-2 4K हाई-डेफिनिशन में रिलीज़ होने वाली पहली तेलुगु फिल्म है। फ़िल्म की रिलीज की तारीख से पहले 200 स्क्रीन के करीब 4K प्रोजेक्टर्स को अपग्रेड किया गया। बाहुबली-2 पूरी दुनिया में पहली भारतीय फिल्म बन गई है, जिसने सभी भाषाओं में 1000 करोड़ (10 बिलियन) से अधिक कमाई की है। और पूरी दुनिया में पहली भारतीय फिल्म बन गई है, जिसने 3 दिनों में सभी भाषाओं में 500 करोड़ ( 5 बिलियन) से अधिक कमाई की है। यह पहले सप्ताह में 128 करोड़ रूपए से ज्यादा कमाई वाली पहली हिंदी फिल्म है।

Veeron Ke Veer Bahubali 2 The Conclusion | वीरों के वीर आ | Talking tom