जब किसी व्यक्ति को किसी घटना में अन्याय का अनुभव होता हे
तो वो घटना उसके अंतर को जगजोड़ा देती हे
समस्त जगत उसे अपना शत्रु प्रतीत होता हे
अन्याय करने वाली घटना जितनी बड़ी होती हे
मनुष्य का ह्रदय भी उतना ही अधिक विरोध करता हे
उस घटना के उत्तर में वो न्याय मांगता हे
और ये योग्य भी हे वास्तव में समाज में
किसी भी प्रकार का अन्याय व्यक्ति की
आस्था और विश्वाश का नाश हे
किन्तु ये न्याय क्या हे ?
न्याय का अर्थ क्या हे ?
अन्याय करने वाले को अपने कार्य पर पश्वाताप हो
और अन्याय भुगत ने वाले के मनमे फिर से
विश्वाश जगे समाज के प्रति इतना ही अर्थ हे ना न्याय का
किन्तु जिसके ह्रदय में धर्म नहीं होता हे
वो न्याय को छोड़ कर वेर और प्रतिशोध को अपनाता हे
हिंसा के बदले कठिन हिंसा की भावना को लेके चलता हे
स्वयं भोगे हुए पीड़ा से कई अधिक पीड़ा देने का प्रयत्न करता हे
और इस स्थान पर चलते अन्याय को भोगतने वाला स्वयं
अन्याय करने लगता हे शिघ्र ही वो अपराधी बन जाता हे
अर्थात न्याय और प्रतिशोध के बिच बहौत कम अंतर होता हे
और इशी अंतर का नाम हे धर्म क्या ये सत्य नहीं
स्वयं विचार कीजिए
Krishna's Updesh- What is Justice!!! | स्वयं विचार कीजिए
मनुष्य के सारे संबंधों का आधार हे अपेक्षा,
पति केसा हो जो मेरा जीवन सुख और सुविधा से भर दे
पत्नी केसी हे जो सदैव मेरे प्रति समर्पित रहे
संतान केसी हो जो मेरी सेवा करे मेरा आदेश माने
मनुष्य उसी को प्रेम ही कर पाता हे
जो उसकी अपेक्षा पूर्ण करता हे
और अपेक्षा की तो नियति हे भंग होना
वो कैसे?
क्योंकि अपेक्षा मनुष्य के मस्तिष्क से जन्म लेती हे
कोई व्यक्ति उनकी अपेक्षाओ के बारे में जान ही नही पाता
पूर्ण करने के प्रामाणिक इच्छा हो तब भी
कोई मनुष्य किसीकी अपेक्षाओ को पूर्ण नही कर पाता
और वहां से जन्म लेता हे संघर्ष !
सारे सम्बन्ध संघर्ष में परिवर्तित हो जाते हे
पर मनुष्य अपेक्षा को संघर्ष का आधार न बनाये
और स्वीकार करे केवल सम्बन्ध का आधार
तो क्या ये जीवन स्व्यमेव सुख और शांति से नहीं भर जायेगा
स्वयं विचार करे !!!!
Krishna's Updesh- Key to achieve Healthy Relationships | स्वयं विचार करे !!!!
में समय हु...अर्जुन के प्रश्न केवल अर्जुन के लिए नहीं हे ये प्रश्न तो पिछले युग के लिए भी प्रासंगिक थे आज के लिए भी प्रासंगिक हे और आने वाले युगों के लिए भी प्रांगिक रहेंगे.
जब तक में हु तब तक इन प्रश्नों का सामना करना पड़ता रहेगा इसीलिए कोई ये न पूछे के ये प्रश्न केवल कुंती पुत्र अर्जुन के थे में बिता हुआ कल भी था आज भी हु और आने वाला कल भी हु
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
Mahabharat - Me Samy Hu | में समय हु
What is Bhagwad geeta opnion by Ramanand Sagar,Mahatma Gandhi,Dr Radhakrishna ,lokmanya tilak
Importance of Bhagwad geeta opnion by Ramanand Sagar,Mahatma Gandhi
ईश संसार में अगर कुछ पाने की चीज हे तो
वह ईश्वर हे और कुछ जानने की चीज हे तो
स्वयं को की "
में कौन हु " अगर
स्वयं को
जान लिया तो हमारा जन्म सार्थक हो जायेगा
ईश्वर में विश्वास एवं प्रेम की प्राप्ति के
लिए ही यह मानव जीवन मिला हे प्रत्येक मनुष्य अपने परमात्मा स्वरुप का
अनुभव करके परम आनंदमय जीवन से अभिन्न हो जाए यही इस जीवन का अंतिम लक्ष्य हे
Bhagwad Gita Quotes in hindi | Suvichar in hindi | सुविचार
परिवर्तन ही
संसार का नियम है
अहिंसा ही परम् धर्म हे और उसके साथ सत्य, क्रोध न करना, त्याग, मन की शांति, निंदा न करना दया भाव, सुख के प्रति आकर्षित न
होना , बिना कारण कोई कार्य न करना , तेज, क्षमा, धैर्य, शरीर की शुद्धता, धर्म का द्रोह न करना तथा अहंकार न करना इतने गुणों को सत्व गुणी संपत्ति या
दैवी संपति कहा जाता हे
जो हुआ, वह अच्छा हुआ,
जो हो रहा है, वह भी अच्छा ही हो रहा है,
और जो होगा, वह भी
अच्छा ही होगा।
तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो?
तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया?
तुमने क्यापैदा किया था,
जो नाश हो गया?
तुमने
जो लिया यहीं से लिया,
जो दिया, यहीं
पर दिया।
आज जो कुछ आप
का है,पहले किसी
और का था और भविष्य
में किसी
और का हो जाएगा
GITA SAAR | गीता सार | Bhagwat Geeta Quotes in Hindi
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