अंतिम क्षण में ॐ उच्चारण का महत्व

ॐ मंत्र उच्चारण से आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता हे
अंतिम क्षण में ॐ उच्चारण का महत्व  | मनुष्य जीवन का उदेश्य मृत्यु के चक्र से निकल कर मोक्ष प्राप्त करना हे | आत्मा का परमात्मा से मिलन कैसे होता हे | ॐ मंत्र उच्चारण से आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता हे

अंतिम क्षण में ॐ उच्चारण का महत्व | श्रीमद भगवद गीता | Shrimad Bhagavad Gita | गीता सार | Bhagwat Gita Saar

माया क्या हे | संसार को परमात्मा की माया क्यों कहा जाता हे | परमात्मा कण-कण में समाया हुआ है


संसार को परमात्मा की माया क्यों कहा जाता हे | परमात्मा कण-कण में समाया हुआ है
माया क्या है? सांख्ययोग का ज्ञान
रिश्ते नाते का चक्रव्यूह कैसे चलता हे?
मृत्यु के बाद संबंध समाप्त हो जाता हे
 रिश्ते नाते मोह को उत्पन्न करते है

माया क्या हे | श्रीमद भगवद गीता | Shrimad Bhagavad Gita | गीता सार | Bhagwat Gita Saar

स्थितप्रज्ञ मनुष्य  की बुद्धि स्थिर रहती हे


स्थितप्रज्ञ मनुष्य  की बुद्धि स्थिर रहती हे
स्थित प्रज्ञ व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को विषयों से समेट कर उन्हें अपने वश में कर लेता है तथा मन को ईश्वर में लीन कर लेता है

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते ।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥

क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः ।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ॥

विषयोंका निरंतर चिंतन करनेवाले पुरुषकी विषयोंमें आसक्ति हो जाती है, आसक्तिसे उन विषयोंकी कामना उत्पन्न होती है और कामनामें (विघ्न पडनेसे) क्रोध उत्पन्न होता है ।क्रोधसे संमोह (मूढभाव) उत्पन्न होता है, संमोहसे स्मृतिभ्रम होता है (भान भूलना), स्मृतिभ्रम से बुद्धि अर्थात् ज्ञानशक्तिका नाश होता है, और बुद्धिनाश होने से सर्वनाश हो जाता है । 

 यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेऽभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥

कछुवा सब ओरसे अपने अंगोंको जैसे समेट लेता है, वैसे ही जब यह (महात्मा) इन्द्रियोंके विषयोंसे इन्द्रियोंको सब प्रकारसे ह्टा लेता है, तब उसकी बुद्धि स्थिर है (एसा समज) । 
ज्ञान से बुध्दि, बुध्दि से मन और मन से इन्द्रियों को वश करनाचाहिए

स्थितप्रज्ञ की परिभाषा | श्रीमद भगवद गीता | Shrimad Bhagavad Gita | गीता सार | Bhagwat Gita Saar

परिवर्तन प्रकृति का नियम 



प्रकृति अर्थात् क्या हे ? प्र = विशेष और कृति = किया गया। स्वाभाविक की गई चीज़ नहीं। लेकिन विभाव में जाकर, विशेष रूप से की गई चीज़, वही प्रकृति है।

प्रकृति के तीन गुण से ( सत्त्व , रजस् और तमस् ) सृष्टि की रचना हुई है । ये तीनों घटक सजीव-निर्जीव, स्थूल-सूक्ष्म वस्तुओं में विद्यमान रहते हैं । इन तीनों के बिना किसी वास्तविक पदार्थ का अस्तित्व संभव नहीं है। किसी भी पदार्थ में इन तीन गुणों के न्यूनाधिक प्रभाव के कारण उस का चरित्र निर्धारित होता है।

सत्वगुण का अर्थ "पवित्रता" तथा "ज्ञान" है। सत्व अर्थात अच्छे कर्मों की ओर मोड़ने वाला गुण खा हे | तीनों गुणों ( सत्त्व , रजस् और तमस् ) में से सर्वश्रेष्ठ गुण सत्त्व गुण हे सात्विक मनुष्य – किसी कर्म फल अथवा मान सम्मान की अपेक्षा अथवा स्वार्थ के बिना समाज की सेवा करना ।

सत्त्वगुण दैवी तत्त्व के सबसे निकट है । इसलिए सत्त्व प्रधान व्यक्ति के लक्षण हैं – प्रसन्नता, संतुष्टि, धैर्य, क्षमा करने की क्षमता, अध्यात्म के प्रति झुकाव । एक सात्विक व्यक्ति हमेशा वैश्विक कल्याण के निमित्त काम करता है। हमेशा मेहनती, सतर्क होता है । एक पवित्र जीवनयापन करता है। सच बोलता है और साहसी होता है।

रजस् का अर्थ क्रिया तथा इच्छाएं है। राजसिक मनुष्य – स्वयं के लाभ तथा कार्यसिद्धि हेतु जीना । जो गति पदार्थ के निर्जीव और सजीव दोनों ही रूपों में देखने को मिलती वह रजस् के कारण देखने को मिलती है। निर्जीव पदार्थों में गति और गतिविधि, विकास और ह्रास रजस् का परिणाम हैं वहीं जीवित पदार्थों में क्रियात्मकता, गति की निरंतरता और पीड़ा रजस के परिणाम हैं।

तमस् का अर्थ अज्ञानता तथा निष्क्रियता है। तामसिक मनुष्य – दूसरों को अथवा समाज को हानि पहुंचाकर स्वयं का स्वार्थ सिद्ध करना | तम प्रधान व्यक्ति, आलसी, लोभी, सांसारिक इच्छाओं से आसक्त रहता है ।

तमस् गुण के प्रधान होने पर व्यक्ति को सत्य-असत्य का कुछ पता नहीं चलता, यानि वो अज्ञान के अंधकार (तम) में रहता है। यानि कौन सी बात उसके लिए अच्छी है वा कौन सी बुरी ये यथार्थ पता नहीं चलता और इस स्वभाव के व्यक्ति को ये जानने की जिज्ञासा भी नहीं होती।

प्रकृति के तीन गुण सत्व,रजस,तमस की परिभाषा | श्रीमद भगवद गीता | Shrimad Bhagavad Gita | गीता सार | Bhagwat Gita Saar

श्रीमद भगवद गीता अनुसार कर्म और कर्मयोगी की परिभाषा प्रारब्ध क्या हे कैसे बनती हे और उसे कौन बनाता हे ? | निष्काम कर्म योग किसे कहते हे


श्रीमद भगवद गीता अनुसार कर्म और कर्मयोगी की परिभाषा प्रारब्ध क्या हे कैसे बनती हे और उसे कौन बनाता हे ? | निष्काम कर्म योग किसे कहते हे

प्रारब्ध में न हो तो मुँह तक पोहकचर भी निवाला छीन जाता हे
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ।। 

कर्मण्ये वाधिका रस्ते मा फलेषु कदाचन । 
मा कर्म फल हेतुरभुह, माँ ते संगोत्स्व कर्मण्ये।।


प्रारब्ध क्या हे कैसे बनती हे और उसे कौन बनाता हे ? | निष्काम कर्म योग | NISHKAM KARMA YOGA

                                Veeron Ke Veer Bahubali 2 The Conclusion



बाहुबली 2: द कॉन्क्लूज़न, बाहुबली: द बिगनिंग फ़िल्म का दूसरा भाग है। यह एक ऐतिहासिक फिक्शन फ़िल्म है। इस फ़िल्म को तेलुगू और तमिल भाषा में बनाया गया है । हिन्दी, मलयालम और अन्य भाषाओं में इसकी डबिंग की गयी है। इसका निर्देशन एस॰एस॰ राजामौली ने किया है। यह 8 जुलाई 2016 को सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने वाली थी। लेकिन इसके निर्माण में देरी के कारण यह समय और आगे बढ़ा दिया गया।और यह 28 अप्रैल 2017 मे प्रदर्शित की गयी। शुरू में, दोनों भागों को संयुक्त रूप से  ​​250 करोड़ ( 2.5 अरब) के बजट पर तैयार किया गया,हालांकि बाद में दूसरे भाग का बजट 200 करोड़ बढ़ा दिया गया और इस प्रकार कुल मिलकर दोनों फिल्मों का बजट 450 करोड़ हो गया। इस तरह, बाहुबली 2: द कॉन्क्लूज़न भारतीय सिनेमा इतिहास की सबसे महंगी फिल्म हो गयी।
इस फ़िल्म ने रिलीज़ से पहले ही ₹ 500 करोड़ ( 5 अरब) का बिजनेस का कीर्तिमान बनाया है।
फिल्म को 28 अप्रैल 2017 को दुनिया भर में प्रदर्शित किया गया। बाहुबली-2 4K हाई-डेफिनिशन में रिलीज़ होने वाली पहली तेलुगु फिल्म है। फ़िल्म की रिलीज की तारीख से पहले 200 स्क्रीन के करीब 4K प्रोजेक्टर्स को अपग्रेड किया गया। बाहुबली-2 पूरी दुनिया में पहली भारतीय फिल्म बन गई है, जिसने सभी भाषाओं में 1000 करोड़ (10 बिलियन) से अधिक कमाई की है। और पूरी दुनिया में पहली भारतीय फिल्म बन गई है, जिसने 3 दिनों में सभी भाषाओं में 500 करोड़ ( 5 बिलियन) से अधिक कमाई की है। यह पहले सप्ताह में 128 करोड़ रूपए से ज्यादा कमाई वाली पहली हिंदी फिल्म है।

Veeron Ke Veer Bahubali 2 The Conclusion | वीरों के वीर आ | Talking tom