Krishna's Updesh- What is Justice!!! | स्वयं विचार कीजिए

जब किसी व्यक्ति को किसी घटना में अन्याय का अनुभव होता हे
तो वो घटना उसके अंतर को जगजोड़ा देती हे
समस्त जगत उसे अपना शत्रु प्रतीत होता हे
अन्याय करने वाली घटना जितनी बड़ी  होती हे
मनुष्य का ह्रदय भी उतना ही अधिक विरोध करता हे
उस घटना के उत्तर में वो न्याय मांगता हे
और ये योग्य भी हे वास्तव में समाज में
किसी भी प्रकार का अन्याय  व्यक्ति की
आस्था और विश्वाश का नाश हे
किन्तु ये न्याय क्या हे ?
 न्याय का अर्थ क्या हे ?
अन्याय करने वाले को अपने कार्य पर पश्वाताप हो
और अन्याय भुगत ने वाले के मनमे  फिर से
विश्वाश जगे समाज के प्रति इतना ही अर्थ हे ना न्याय का
किन्तु जिसके ह्रदय में धर्म नहीं होता हे
वो न्याय को छोड़ कर वेर और प्रतिशोध को अपनाता हे
हिंसा के बदले कठिन हिंसा की भावना को लेके चलता हे
स्वयं भोगे हुए पीड़ा से कई अधिक पीड़ा देने का प्रयत्न करता हे
और इस स्थान पर चलते अन्याय को भोगतने वाला स्वयं
अन्याय करने लगता हे शिघ्र ही वो अपराधी बन जाता हे
अर्थात न्याय और प्रतिशोध के बिच बहौत कम अंतर होता हे
और इशी अंतर का नाम हे धर्म क्या ये सत्य नहीं
स्वयं विचार कीजिए