रणछोड़ कृष्ण | Ranchod Krishna | भगवान कृष्ण को रनछोड़ क्यों कहा जाता है

कृष्ण को रणछोड़ क्यों कहते हैं?



श्रीकृष्ण ने अपना पांच्यजन्य शंख बजाया।
उनके शंख की भयंकर ध्वनि सुनकर शत्रुपक्ष की सेना के वीरों के हृदय डर के मारे थर्रा उठे।
जब कालयवन भगवान् श्रीकृष्ण की ओर दौड़ा, तब वे दूसरी ओर मुंह करके रणभूमि से भाग चले और उन योगिदुर्लभ प्रभु को पकडऩे के लिए कालयवन उनके पीछे-पीछे दौडऩे लगा।
रणछोड़ भगवान् लीला करते हुए भाग रहे थे, कालयवन पग-पग पर यही समझता था कि अब पकड़ा, तब पकड़ा।
इस प्रकार भगवान् बहुत दूर एक पहाड़ की गुफा में घुस गए।
उनके पीछे कालयवन भी घुसा।
वहां उसने एक दूसरे ही मनुष्य को सोते हुए देखा।
उसे देखकर कालयवन ने सोचा ''देखो तो सही, यह मुझे इस प्रकार इतनी दूर ले आया और अब इस तरह-मानो इसे कुछ पता ही न हो, साधु बाबा बनकर सो रहा है।
यह सोचकर उस मूढ़ ने उसे कसकर एक लात मारी।
वह पुरुष बहुत दिनों से वहां सोया हुआ था।
पैर की ठोकर लगने से वह उठ पड़ा और धीरे-धीरे उसने अपनी आंखें खोलीं।
इधर-उधर देखने पर पास ही कालयवन खड़ा हुआ दिखाई दिया।
वह पुरुष इस प्रकार ठोकर मारकर जगाए जाने से कुछ रुष्ट हो गया था।
उसकी दृष्टि पड़ते ही कालयवन के शरीर में आग पैदा हो गई और वह क्षणभर में जलकर राख का ढेर हो गया।
कालयवन को जो पुरुष गुफा में सोए मिले.।
वे इक्ष्वाकुवंषी महाराजा मान्धाता के पुत्र राजा मुचुकुन्द थे।
वे ब्राह्मणों के परम भक्त, सत्यप्रतिज्ञ, संग्राम विजयी और महापुरुष थे।
एक बार इन्द्रादि देवता असुरों से अत्यन्त भयभीत हो गए थे।
उन्होंने अपनी रक्षा के लिए राजा मुचुकुन्द से प्रार्थना की और उन्होंने बहुत दिनों तक उनकी रक्षा की।
उस समय देवताओं ने कह दिया था कि सोते समय यदि आपको कोई मूर्ख बीच में ही जगा देगा, तो वह आपकी दृष्टि पड़ते ही उसी क्षण भस्म हो जाएगा।
कालयवन के भस्म होते ही भगवान श्रीकृष्ण मुचुकुंद के समक्ष प्रकट हुए मुचुकुंद ने उनको प्रणाम किया।
भगवान् ने उसे बद्रिकाश्रम जाने के लिए कहा।
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