जब श्री कृष्ण ने कालिया नाग का वध किया | KALIYA NAAG COMPLETE STORY
जब श्री कृष्ण ने कालिया नाग का वध किया | KALIYA NAAG COMPLETE STORY
कालिय नाग कद्रू का पुत्र और पन्नग जाति का नागराज था। वह पहले रमण द्वीप में निवास करता था, किंतु पक्षीराज गरुड़ से शत्रुता हो जाने के कारण वह यमुना नदी में कुण्ड में आकर रहने लगा था। यमुनाजी का यह कुण्ड गरुड़ के लिए अगम्य था, क्योंकि इसी स्थान पर एक दिन क्षुधातुर गरुड़ ने तपस्वी सौभरि के मना करने पर भी अपने अभीष्ट मत्स्य को बलपूर्वक पकड़कर खा डाला था, इसीलिए महर्षि सौभरि ने गरुड़ को शाप दिया था कि- "यदि गरुड़ फिर कभी इस कुण्ड में घुसकर मछलियों को खायेंगे तो उसी क्षण प्राणों से हाथ धो बैठेंगे"। कालिय नाग यह बात जानता था, इसीलिए वह यमुना के उक्त कुण्ड में रहने आ गया था।
कालिय नाग ने विष से यमुना का जल ज़हरीला हो गया। उसे पीकर गाय और गोप मरने लगे। एक बार जब खेलते समय गेंद यमुना में गिर जाने से कृष्ण उसे निकालने के लिए यमुना में कूदे और
कालिया नाग के एक सौ एक सिर थे। वह अपने जिस शरीर को नहीं झुकाता था, उसी को प्रचण्ड दण्डधारी भगवान् अपने पैरों की चोट से कुचल डालते। इससे कालिया नाग की जीवनशक्ति क्षीण हो चली, वह मुंह और नथुनों से खून उगलने लगा। अन्त में चक्कर काटते-काटते वह बेहोश हो गया। अपने पति की यह दशा देखकर उसकी पत्नियां भगवान् की शरण में आयीं। और बोली अपराध सह लेना चाहिए। यह मूढ है, आपको पहचानता नहीं है, इसलिए इसे क्षमा कर दीजिए। भगवन् कृपा कीजिए, अब यह सर्प मरने ही वाला है। नागपत्नियों की याचना से भगवान पिघल गए। कालिया को मृत्युदण्ड देने का इरादा त्याग दिया।
भगवान के प्रहारों से आहत कालिया का दंभ भी टूट चुका था। धीरे-धीरे कालिया नाग की इन्द्रियों और प्राणों में कुछ-कुछ चेतना आ गई
कालिय को युद्ध में हराने के बाद उसके फण पर नाचने लगे। उन्होंने गरुड़ से निर्भयता का वरदान देकर कालिय को पुन: रमण द्वीप भेज दिया। यमुना का यह स्थान आज भी 'कालियदह' कहलाता है।
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ICANSPIRIT
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March 17, 2017